प्लास्टिक से पीछा छुड़ाएं इस तरीके से plastik mukt bhart

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  प्लास्टिक से पीछा छुड़ाने के लिए क्या करना होगा?
                      आईये जानते है
   
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हाल ही में देश के दो बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र ने प्लास्टिक पर पाबंदी लगा दी. ये पाबंदी हर तरह के प्लास्टिक पर तो नहीं लागू होगी. मगर, पर्यावरण के लिए ज़्यादा नुक़सानदेह मानी जाने वाली प्लास्टिक पर इन राज्यों ने रोक लगा दी है.

भारत में प्लास्टिक पर पाबंदी की मांग ज़ोर-शोर से उठती रही है. भारत ही क्यों, दुनिया के कई देशों में इस पर पाबंदी लगी है.

वैसे इस पाबंदी पर भी शर्तें लागू हैं. मगर, आज प्लास्टिक को दुनिया में इंसानियत ही नहीं हर तरह के जीव के लिए दुश्मन के तौर पर देखा जाता है.

प्लास्टिक के कचरे से पूरी दुनिया परेशान है. समंदर हो या नदियां. पहाड़ हों, दूर स्थित द्वीप हों या मैदान, हर जगह प्लास्टिक के कचरे से प्रदूषण और पर्यावरण को भारी नुक़सान हो रहा है.

क्लेयर वालुडा, ब्रिटेन के अंटार्कटिक सर्वे के लिए काम करती हैं. वो साउथ जॉर्जिया के तट पर टहलते हुए, चट्टानों के बीच एक प्लास्टिक की बोतल फंसी देखती हैं, तो उसे निकालती हैं.

ये प्लास्टिक के उन सैकड़ों टुकड़ों में से एक है, जो क्लेयर को अक्सर इस सुदूर द्वीप के किनारे पड़े मिल जाते हैं.

प्लास्टिक कचरा, इंसानी लापरवाही का सबूत
साउथ जॉर्जिया, अटलांटिक महासागर के दक्षिणी हिस्से में स्थित छोटा का जज़ीरा है. यहां से जो सबसे नज़दीकी इंसानी बस्ती है, वो भी यहां से क़रीब 1500 किलोमीटर दूर है. लेकिन, समंदर की लहरें, इस द्वीप के किनारे पर हमारी लापरवाही के निशान छोड़ जाती हैं.

हम इस्तेमाल के बाद बड़ी बेपरवाही से प्लास्टिक की बोतलें या दूसरे सामान फेंक देते हैं. दक्षिणी जॉर्जिया द्वीप पर क्लेयर को मिली प्लास्टिक की बोतल, इसी लापरवाही का सबूत है.

क्लेयर को अक्सर यहां के परिंदों के गलों में अटके प्लास्टिक के टुकड़े मिल जाते हैं. और ये तो बहुत छोटी सी मिसाल है. पूरी दुनिया में हर साल पैकेजिंग के लिए क़रीब आठ करोड़ टन प्लास्टिक तैयार की जाती है.

ये उद्योग क़रीब दो सौ अरब डॉलर का है. आठ करोड़ टन प्लास्टिक का बेहद मामूली हिस्सा ही रिसाइकिल होता है. बाक़ी का प्लास्टिक धरती पर यूं ही जर्मनी से लेकर अंटार्कटिका तक फ़ैलता रहता है.

क़दम उठाने रहे कई देश
मीडिया में प्लास्टिक की वजह से फ़ैलते प्रदूषण को लेकर तमाम रिपोर्ट आती रहती हैं. बीबीसी के ब्लू प्लैनेट 2 शो में भी सर डेविड एटेनबरो ने समंदर में प्लास्टिक से पैदा हो रही परेशानियों के बारे में बताया था. जनता की बढ़ती फ़िक्र देखकर कई देशों की सरकारें और कंपनियां प्लास्टिक के बेतहाशा इस्तेमाल को रोकने के लिए कई क़दम उठा रही हैं.

पर, बड़ा सवाल ये है कि आज हमें जिस तरह प्लास्टिक की लत लग गई है, उसमें बुनियादी तौर पर बदलाव कैसे लाया जा सकता है?

60 देशों में प्लास्टिक पर बने क़ानून
कई कंपनियां हैं, जो प्लास्टिक के कचरे का उत्पादन कम करने की कोशिश कर रही हैं. इसके लिए वो अपने मुनाफ़े से भी समझौता कर रही हैं. जैसे कि कोका-कोला कंपनी हर साल केवल ब्रिटेन में ही 38,250 टन प्लास्टिक पैकेजिंग में इस्तेमाल करती है. ब्रिटेन में कोका-कोला 110 अरब प्लास्टिक की ऐसी बोतलों में अपने उत्पाद बेचती है, जिन्हें सिर्फ़ एक बार इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

अब कोका-कोला ने वादा किया है कि वो ऐसी प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ाएगी जिन्हें रिसाइकिल किया जा सकता है. इससे उसकी लागत बढ़ेगी.

दुनिया के क़रीब 60 देशों ने प्लास्टिक की थैलियों और सिर्फ़ एक बार इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक के उत्पादन पर क़ाबू पाने के लिए क़ानून बनाए हैं. इसी महीने वनुआतू नाम का छोटा सा देश एक बार इस्तेमाल होने वाले हर तरह के प्लास्टिक पर रोक लगाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया.

ये बदलाव बहुत महंगा है
टेस्को और वालमार्ट जैसे मल्टीनेशनल स्टोर्स ने पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक की मात्रा में कटौती का वादा किया है. कोका-कोला के अलावा पेप्सी, नेस्ले, यूनीलीवर और लॉरियल जैसी कंपनियों ने दोबारा इस्तेमाल हो सकने वाले प्लास्टिक के ज़्यादा इस्तेमाल का वादा किया है. इन कंपनियों ने प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करने के लिए 2025 तक का टारगेट रखा है.

परेशानी इस बात की है कि अभी ये कंपनियां वो तरीक़ा नहीं खोज पायी हैं, जिनसे प्लास्टिक के इस्तेमाल में कटौती कर सकें. उसका विकल्प तलाश सकें.

बहुत से जानकार चिंता जता रहे हैं कि सही विकल्प न तलाशने पर, हमारे लिए इन कंपनियों के उत्पाद ख़रीदना महंगा हो सकता है.

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के इलियट व्हिटिंगटन कहते हैं कि, 'ये बात इतनी आसान नहीं है कि प्लास्टिक ख़राब चीज़ है, तो चलो उसकी जगह कुछ और इस्तेमाल करते हैं. प्लास्टिक से पीछा छुड़ाने के लिए हमें अपनी आदतें बदलनी होंगी. पैकेजिंग उद्योग को एकदम नई सोच के साथ काम करना होगा. अभी पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक को एक बार प्रयोग कर के फेंक दिया जाता है. हमें इस आदत से पीछा छुड़ाना होगा. सरकार को इसकी अगुवाई करनी होगी'.

इस वक़्त यूरोप में जो खाना बिकता है, उसका एक तिहाई प्लास्टिक में पैक किया जाता है. यूरोप में रहने वाला हर शख़्स हर साल 31 किलो प्लास्टिक का कचरा निकालता है.

क्यों बढ़ा प्लास्टिक का इस्तेमाल?
प्लास्टिक के इस कदर बढ़े इस्तेमाल की सबसे बड़ी वजह है कि इसे बहुत कम लागत में तैयार किया जा सकता है. जैसे कि कांच की बोतल, प्लास्टिक की बोतल से काफ़ी महंगी पड़ती है. फिर उसे लाने-ले जाने में भी बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है. जबकि प्लास्टिक को आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है. ये हल्का होता है.

आज से पचास साल पहले प्लास्टिक की क्रांति आने से पहले, ज़्यादातर पेय पदार्थ कांच की बोतलों में बिकते थे. आज की तारीख़ में कमोबेश हर पेय पदार्थ प्लास्टिक में पैक होकर बिकता है. इसे हम पॉलीथिलीन टेरेप्थैलेट या PET के नाम से जानते हैं. कांच के मुक़ाबले प्लास्टिक की बोतल बनाना सस्ता पड़ता है. लेकिन, ये फ़र्क़ बहुत ज़्यादा नहीं है.

मुश्किल आती है, इन पैकेज्ड बोतलों को कहीं ले जाने में. 330 मिलीलीटर ड्रिंक भरने वाली प्लास्टिक की बोतल का वज़न 18 ग्राम होता है. वहीं कांच की बोतल का वज़न 190 से 250 ग्राम तक हो सकता है. इन भारी बोतलों को कहीं ले जाने में 40 फ़ीसद ज़्यादा ईंधन ख़र्च होगा. ज़ाहिर है ज़्यादा तेल जलेगा, तो पर्यावरण को नुक़सान भी ज़्यादा होगा. पर्यावरण के लिहाज़ से देखें, तो प्लास्टिक की बोतल के मुक़ाबले कांच की बोतल को कहीं ले जाने में पांच गुना ज़्यादा प्रदूषण होगा.

अमरीका की मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ पैकेजिंग की सूसन सेल्के कहती हैं कि कई मायनों में प्लास्टिक पर्यावरण के लिए, दूसरे विकल्पों से बेहतर है.

अमरीकी केमिस्टिरी काउंसिल और पर्यावरण अनुसंधान करने वाली कंपनी ट्रूकॉस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, अगर सॉफ्ट ड्रिंक बनाने वाली कंपनियां प्लास्टिक की जगह कांच, एल्यूमिनियम या टिन का इस्तेमाल करने लगें, तो इससे पांच गुना ज़्यादा पर्यावरण प्रदूषण फैलेगा. अब सरकारें, प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों पर टैक्स लगाने लगी हैं. तो, इसका असर ग्राहकों पर भी पड़ेगा.

ब्रिटिश पैकेजिंग फेडरेशन के डिक सियर्ले कहते हैं कि खाने-पीने का सामान प्लास्टिक पर रोक की वजह से महंगा हो जाएगा. दूध पैक करने के लिए कांच की बोतलों का इस्तेमाल करने से इसकी क़ीमत बढ़ जाएगी.

तो इसका क्या मतलब हुआ कि लागत बढ़ेगी, तो उसे ग्राहकों पर डाल दिया जाएगा?

ब्रिटिस सुपरमार्केट चेन आइसलैंड ने 2023 तक अपनी पैकेजिंग से प्लास्टिक को पूरी तरह से हटा देने का लक्ष्य रखा है. इसकी जगह वो कांच और सेल्यूलोज़ का इस्तेमाल करेगी. कंपनी यक़ीन दिला रही है कि वो इसका बोझ ग्राहकों पर नहीं डालेगी.

वैसे, बहुत से ऐसे लोग हैं कि हम 70 साल से प्लास्टिक का इस्तेमाल पैकेजिंग के लिए कर रहे हैं. अचानक इस पर पाबंदी लगी, तो इसकी क़ीमत हम कई तरह से चुकाएंगे.

आप अक्सर बड़े स्टोर्स में सब्ज़ियों, जैसे लौकी या खीरे को प्लास्टिक में लिपटा हुआ देखते हैं. आप को लगता होगा कि ज़बरदस्ती प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा रहा है. मगर, इसकी हक़ीक़त अलग ही है. प्लास्टिक में लपेटकर दरअसल उन सब्ज़ियों की उम्र बढ़ा दी जाती है. वो जल्दी ख़राब नहीं होती हैं.

ब्रिटेन की शेफील्ड यूनिवर्सिटी में केमिस्ट्री के प्रोफ़ेसर एंथनी रेयान कहते हैं, 'खाने को बर्बाद होने से बचाने में प्लास्टिक के रोल को लोग बहुत कम कर के आंकते हैं'.

जैसे कि प्लास्टिक में लिपटे खीरे की उम्र खुले में रखे खीरे से ज़्यादा होती है. इसे यूं ही प्लास्टिक में लपेटकर फ्रिज में क़रीब 15 दिनों तक रखा जा सकता है. इससे खाने की बर्बादी में 50 फ़ीसद तक की कटौती की जा सकती है. खुले में खीरा केवल दो दिन तक ठीक रह सकता है. वहीं फ्रिज में खुला डालने पर ये एक हफ़्ते तक सड़ने से बचा रहेगा.

मांस की पैकेजिंग
तमाम तरह के मांस की पैकेजिंग भी प्लास्टिक में होती है. इससे कच्चा मांस ज़्यादा दिनों तक सुरक्षित रहता है. बर्बादी कम होती है.

खाने-पीने का ज़्यादातर सामान हम प्लास्टिक की पैकेजिंग में ही देखते हैं. इससे इनके इस्तेमाल कर पाने का का वक़्त बढ़ जाता है. जैसे कि अंगूरों को प्लास्टिक के डिब्बों में रखने से इनकी बर्बादी 75 फ़ीसद तक कम हो जाती है. इसी तरह दूसरे फलों को भी प्लास्टिक की पैकेजिंग की मदद से बर्बाद होने से बचाया जाता है.

प्लास्टिक में पैक खाने-पीने के सामान की उम्र केवल एक दिन बढ़ाने से ब्रिटेन के लोगों के क़रीब 50 करोड़ पाउंड बचते हैं.

दुनिया भर में पहले ही हर साल क़रीब एक खरब डॉलर का खाना बर्बाद होता है. इस नुक़सान को ज़्यादातर उत्पाद तैयार करने वाले या खुदरा दुकानदार उठाते हैं. केवल एक बार इस्तेमाल हो सकने वाले प्लास्टिक की मदद से खाने की चीज़ों की इस बर्बादी पर लगाम लगाने में मदद मिलती है.

स्मार्ट सोच ही है विकल्प
अब इन बातों की रोशनी में प्लास्टिक पर पूरी तरह से पाबंदी ठीक नहीं लगती.

इलियट व्हिटिंगटन कहते हैं कि, 'प्लास्टिक पर रोक की बात करने के बजाय हमें आगे की सोच रखनी होगी. आज बहुत सी कंपनियां ऐसा प्लास्टिक बना रही हैं, जो क़ुदरती तौर पर ख़ुद ही नष्ट हो जाएगा.' इस बायोप्लास्टिक को बनाने में स्टार्च या प्रोटीन का इस्तेमाल होता है. हालांकि ये पूरी तरह से जैविक प्लास्टिक नहीं होते. मगर काफ़ी हद तक ये पर्यावरण में घुल-मिल जाते हैं.

ब्रिटिश स्किनकेयर कंपनी बुलडॉग ऐसे ही बायोप्लास्टिक का इस्तेमाल करती है. ये नई ट्यूब महंगी हैं. लेकिन, ये पर्यावरण के लिहाज़ से बेहतर विकल्प हैं.


बायोप्लास्टिक का इस्तेमाल
कोका-कोला भी बायोप्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ा रही है. हाल ही में कंपनी ने प्लांटबॉटल नाम का प्लास्टिक उतारा है, जो ब्राज़ील में पैदा होने वाले गन्ने को मिलाकर तैयार होता है. हालांकि ये आम प्लास्टिक की बोतलों से महंगा पड़ता है. लेकिन कंपनी का कहना है कि वो पर्यावरण के भले के लिए ये बोझ उठा रही है.

गन्ने से तैयार होने वाला बायोप्लास्टिक सामान्य प्लास्टिक के मुक़ाबले दोगुना महंगा पड़ता है. वहीं प्लास्टिक से बना चम्मच बायोप्लास्टिक से बने चम्मच से साढ़े तीन गुना महंगा पड़ता है.

डिक सियर्ले कहते हैं कि ये बायोप्लास्टिक महंगा भी पड़ता है और पर्यावरण के लिए भी पूरी तरह से सही नहीं है.

तेल की क़ीमतें दुनिया भर में बढ़ रही हैं. इसकी वजह से भी कंपनियां रिसाइकिल किया गया प्लास्टिक ज़्यादा इस्तेमाल कर रही हैं. क्योंकि कच्चे तेल से बनने वाला नया प्लास्टिक इसके मुक़ाबले महंगा पड़ता है.

प्लास्टिक के साथ ग़लत क्या है?
व्हिटिंगटन कहते हैं कि हमें प्लास्टिक की ऐसी लत लग गई है कि नए विकल्पों की आदत डालना बहुत बड़ी चुनौती है. हमें प्लास्टिक के कचरे को अलग कर के रखना होगा. जैसे कि बायोप्लास्टिक, दोबारा इस्तेमाल हो सकने वाला प्लास्टिक वग़ैरह.

हम फ़िक्रमंद तो हैं प्लास्टिक से होने वाले नुक़सान को लेकर. लेकिन, हम में से शायद ही कोई ऐसा होगा, जो प्लास्टिक को छांटने की ज़हमत उठाना चाहेगा.

एंथनी रेयान कहते हैं कि हमारे समाज में इस्तेमाल कर के फेंक देने की जो आदत है, वो प्लास्टिक से ज़्यादा नुक़सानदेह है. केवल बायोप्लास्टिक इस्तेमाल करने से ये समस्या नहीं दूर होगी.

प्लास्टिक का विकल्प क्या है?
एंथनी रेयान उल्टा ही विकल्प सुझाते हैं. वो कहते हैं कि हम प्लास्टिक छोड़ने के बजाय इसका ज़्यादा इस्तेमाल करें. जैसे कि पतले प्लास्टिक की कई परतें खाने को लपेटने में प्रयोग करने के बजाय प्लास्टिक की मोटी परत ही इस्तेमाल करें. ऐसे में खाना भी बर्बाद नहीं होगा और प्लास्टिक का प्रयोग भी कम होगा.

एंथनी रेयान मानते हैं कि प्लास्टिक को ज़्यादा दिन और ज़्यादा बार तक इस्तेमाल करने लायक़ बनाकर हम प्लास्टिक के कचरे से निपटने में काफ़ी हद तक कामयाब हो सकते हैं. जिस प्लास्टिक को हम अभी फेंक देते हैं, उसे दोबारा इस्तेमाल लायक़ बनाने की कोशिश होनी चाहिए. लोगों को प्लास्टिक को फेंकने के बजाय जमा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

जैसे कि जर्मनी, फिनलैंड, डेनमार्क और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में प्लास्टिक की ख़ाली बोतलें जमा करने पर पैसे दिए जाते हैं. वैसे ये महंगा सौदा है. मगर, प्लास्टिक का कचरा कम करने में इससे मदद मिलती है.

अब जैसे महाराष्ट्र और यूपी ने कुछ प्लास्टिक पर पूरी तरह से पाबंदी लगाई है. वैसे ही कई देश भी ये क़दम उठा रहे हैं. इसका विकल्प वो प्लास्टिक है जिसे कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है.

दक्षिणी जॉर्जिया में प्लास्टिक का कचरा बीनती क्लेयर कहती हैं कि विकल्प कोई भी हो, जो इस द्वीप के परिंदों को प्लास्टिक की मार से बचा सके, उन्हें वो हर विकल्प क़ुबूल है.

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 समंदरों को तबाह करते प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण
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                 आपका दोस्त मुकेश रावत
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Comments

Unknown said…
Har har Modi ji ki jai ho
Unknown said…
Sandar blog yar bhut sandar bhai
Unknown said…
Ham aapke sath Hain bahut hi badhiya aur ismein jis tarike se prayas karna hai Ham pura per sahyog karenge very nice har har modi ji
Unknown said…
Main is comment ke madhyam se yahi kahana chahunga ki agar Ham khud sudhar jaenge tu apne ko kisi aur ko sudharne ki jarurat hi nahin padegi sabse pahle Ham khud apna sudhar Karen apna sudhar desh ka chuda ek hi baat hai thank you very much sahayata karta hun aapko Mera comment pasand aaya hoga

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